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फोबिया
रोगी किसी वस्तु, जीव-जन्तु या परिस्थिति से बहुत अधिक डरता है, और उससे बचने का प्रयास करता है।
लक्षण – अकेले घर से बाहर निकलने तथा अकेले सफर करने में व्यक्ति को डर लगता है, उसे लगता है कि कहीं रास्ते में उसे कुछ हो न जाये। बन्द कमरे में, भीड़ में, अंधकार में, ऊँचाई तथा जीव-जन्तु से डरता है। जैसे:- कॉकरोच, तिलचट्टा, कुत्ता, छिपकली, मेंढक, बिल्ली, हड्डी, इत्यादि। सामाजिक परिस्थितियों में जैसे लोगों से बातचीत करना, भाषण देने, सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करने, स्कूल में लेक्चर देने तथा विपरीत लिंग से बात करने में घबराहट एवं भय का अनुभव होना, जिसके कारण एंजायटी के लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
कारण – स्नायु तंत्र में कमजोरी, मनोबल की कमी, यह एक तरह की आदत भी होती है, जो कि आहिस्ता आहिस्ता बढ़ती है, जैसे कि दूध का जला-छाँछ भी फूँककर पीता है।
उपचार – यह कोई खतरनाक बीमारी नहीं है। अपने मनोबल को बढ़ायें। अकेले सफर करने का प्रयास करें। और यह सोचें कि जीवन-मौत ऊपर वाले के हाथ में है। दवा डॉक्टर के सलाह के अनुसार ही लें। साथ ही मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग का सहारा लें।
एंजायटी – न्यूरोसिस
रोगी घबराहट, बेचैनी के साथ-साथ महसूस करता है कि उसका प्राण निकला जा रहा है,
वह नहीं बच पाएगा। वह एक डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर के पास जाता रहता है।
इनके निम्न लक्षण हैं –
सिर में भारीपन, चक्कर आना, सिर दर्द।
धड़कन तेज, दिल बैठना, साँस रुकने की शिकायत, दम घुटना।
अत्यधिक पसीना, बार-बार पेशाब आना, पेट खराब रहना।
हाथ-पैर सुन्न पड़ जाना, डरावने सपने आना, अचानक जग जाना।
नींद में कमी या टूट-टूट कर आना या देर रात आना।
ध्यान में कमी, याददाश्त में कमी या भूल जाना।
अनावश्यक भय या आशंका से ग्रस्त रहना।
कारण:
दिमाग के केमिकल में गड़बड़ी एवं मनोवैज्ञानिक कारण।
दिमाग के स्नायु तंत्र के कुछ हिस्सों में संयोजक की कमी या अधिकता।
मानसिक तनाव।
मनोबल की कमी।
उपचार:
मनोवैज्ञानिक सलाह (काउंसलिंग) एवं दवाओं के सेवन करने पर इसका इलाज संभव है।
अपने आत्म विश्वास को मजबूत बनायें।
परेशानी होने पर घबरायें नहीं।
योगिक क्रियाएं – ध्यान, प्राणायाम, इत्यादि।
डिप्रेशन
इस बीमारी में व्यक्ति अपने को कमजोर, असहाय, लाचार, दुखी एवं ज़िन्दगी को बेकार समझता है।
इसके निम्न लक्षण हैं:
नींद कम या टूट-टूट कर आना या अधिक आना। भूख कम या कभी-कभी अधिक भूख लगना।
कमजोरी, वजन में कमी, कम बोलना, कभी-कभी एकदम चुपचाप रहना या धीरे-धीरे बोलना।
काम में मन नहीं लगना, घबराहट व बेचैनी का अनुभव होना।
दैनिक क्रियाओं को भी मन से नहीं कर पाना या धीरे-धीरे करना।
आत्मग्लानि एवं अपराध बोध का अनुभव होना।
असफलता का विचार आना, कई बार प्रयास करना और सफल भी हो जाना।
कारण:
डिप्रेशन कई तरह का होता है, और उसी के अनुसार उसका कारण होता है।
सेरोटोनिन नामक एक तरह के दिमागी संयोजक की कमी।
अत्यधिक मानसिक तनाव एवं आर्थिक सामाजिक नुकसान।
प्रतिष्ठा में कमी।
उपचार:
ज़िन्दगी के तनाव को घटाने का प्रयास करें, अथवा उनमें सामंजस्य पैदा करने की कोशिश करें।
एंटीडिप्रेसेंट दवाओं के सेवन से भी ये बीमारी ठीक होती है बशर्ते डॉक्टर की सलाह से ली जाए।
मनोवैज्ञानिक उपचार तथा मनोचिकित्सा एवं काउंसलिंग।
हिस्टीरिया
इस बीमारी में रोगी के शरीर के अंदर कोई कमी नहीं होती, सारी जाँच सही होती हैं, फिर भी शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं।
लक्षण:
बेहोशी आना या दौरे की शिकायत, लकवा जैसी शिकायत या आधा या पूरा शरीर सुन्न पड़ जाना।
बार-बार हिचकी आना, उल्टी आना, तेज-तेज साँस लेना, सिर दर्द, पेट दर्द, तेज-तेज सिर को घुमाना, कोई विचित्र आवाज बार-बार मुँह से निकालना, भूत-प्रेत से ग्रस्त बताना या उनके रूप में बोलना।
आँखों से दिखाई न देना, कानों से सुनाई न देना, मुँह से बोल नहीं पाना, पैर से चल नहीं पाना, आदि विभिन्न प्रकार के शारीरिक लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
सेक्सुल डिसऑर्डर
सेक्स इच्छा की कमी,
उत्तेजना का अभाव
शीघ्रपतन।
लिंग दोष – विपरीत लिंग जैसे व्यवहार एवं बातचीत करना तथा अपने अंदर उस तरह के भावों का अनुभव करना एवं प्रदर्शन करना।
नपुंसकता का अनुभव
सेक्सुअल असंतुष्टि (मजा नहीं आता)।
अप्राकृतिक सेक्सुअल व्यवहार – बालक एवं बच्ची, पशु आदि से सेक्सुअल व्यवहार एवं संतुष्टि का प्रयास।
धात, हस्तमैथुन एवं स्वप्न दोष की बीमारी या सेक्सुअल कमजोरी समझना।
हीनता का भाव।
उदासी
घबराहट, भय एवं शर्म का अनुभव
कारण:
मनौवैज्ञानिक कारण अक्सर देखा गया है कि सेक्स के बारे में गलत जानकारी के कारण ऊपरवक्त सारे लक्षण देखने को मिलते हैं, जबकि शरीर में कोई सेक्सुअल कमी नहीं होती है।
उपचार:
मनौवैज्ञानिक काउंसलिंग (सेक्सथेरेपी) के साथ-साथ आवश्यकतानुसार दवा का नियमित सेवन से यह बीमारी पूर्णतः ठीक हो सकती है।
मॉनिक डिप्रेसिव साइकोसिस
इस बीमारी में दो तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। एक प्रकार जिसे मेनिया कहते हैं, उसमें रोगी अधिक उत्तेजित एवं उत्साहित या तेजी में रहता है। दूसरा जिसे डिप्रेशन कहते हैं, उसमें रोगी का व्यवहार सुस्त हो जाता है, यह मेनिक के ठीक विपरीत स्थिति होती है।
मेनिया के निम्न लक्षण हैं:
अत्यधिक बातचीत करना, गाली-गलौज करना। घूमना-टहलना, बेचैनी, नौचना-गाना, चिल्लाना, रोना-हँसना। गुस्सा करना, तोड़-फोड़ करना, मार-पीट करना, जिद करना।
बड़ी-बड़ी बातें करना, बड़े लोगों से संबंध बताना, स्वयं को धनी, सेक्सुएल, ताकतवर एवं प्रसिद्ध व्यक्ति बताना, कभी-कभी अपने को देवी-देवता बताना या उनसे संबंध बताना।
बिना कारण, लोग मारने आए हैं, जहर देने वाले हैं, बर्बाद करने वाले हैं, ऐसा लगना और किसी भी तरह का नुकसान करना चाहते हैं।
नींद कम आना, भूख कम या अधिक लगना।
अधिक खुशी महसूस करना या चिड़चिड़ापन महसूस करना।
कारण:
दिमाग के केमिकल में गड़बड़ी एवं मनोवैज्ञानिक कारण
आनुवांशिक कारण
अति दबावपूर्ण आर्थिक सामाजिक परिस्थितियाँ
अत्यंत खुशी या प्रसन्नता का माहौल
उपचार:
डॉक्टर की सलाह से दवाओं के सेवन से ये बीमारी ठीक हो सकती है, कभी-कभी यह पुनः रिलीप्स कर जाती है।
फैमिली काउंसलिंग से रोगी की बीमारी को समझने में सहायता मिलती है।
ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) क्या है?
OCD यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें व्यक्ति के मन में बार-बार अवांछित विचार (obsessions) आते हैं और उन विचारों से राहत पाने के लिए वह बार-बार कुछ क्रियाएं (compulsions) दोहराता है। यह समस्या व्यक्ति के रोज़मर्रा के जीवन को प्रभावित कर सकती है।
लक्षण
बार-बार हाथ धोना या साफ़-सफ़ाई करना
चीज़ों को एक विशेष क्रम या पैटर्न में रखना
किसी नुकसान या गलती का बार-बार डर लगना
किसी विचार को बार-बार सोचते रहना, जिससे बेचैनी हो
बार-बार ताला, गैस या दरवाज़ा चेक करना
कारण
ब्रेन में केमिकल असंतुलन (जैसे serotonin)
आनुवंशिक कारण (फैमिली हिस्ट्री)
तनावपूर्ण जीवन अनुभव
परवरिश का तरीका या अत्यधिक सख्ती
उपचार
मनोचिकित्सा (Psychotherapy): CBT (Cognitive Behavioral Therapy) विशेष रूप से उपयोगी होती है, जिसमें व्यक्ति को अपने विचारों और व्यवहार को समझने और बदलने की तकनीक सिखाई जाती है।
दवाइयाँ (Medications): कुछ एंटी-डिप्रेसेंट दवाइयाँ OCD के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती हैं।
रिलैक्सेशन तकनीकें: ध्यान (meditation), साँस लेने की एक्सरसाइज़ और योग भी सहायक हो सकते हैं।
ध्यान देने योग्य बातें
OCD कोई “आदत” नहीं है, बल्कि एक मानसिक रोग है जिसे समझना और इलाज करवाना ज़रूरी है।
जल्द इलाज से सुधार की संभावना अधिक होती है।
अपने लक्षणों को छुपाने की बजाय, खुलकर परिवार और विशेषज्ञ से बात करें।
एडीएचडी (ADHD) क्या है?
ADHD यानी अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर एक न्यूरो-डेवलपमेंटल (मस्तिष्क से जुड़ा विकासात्मक) विकार है, जो सामान्यतः बचपन में शुरू होता है और कई बार वयस्कता तक बना रहता है। इसमें व्यक्ति को ध्यान केंद्रित करने, शांत बैठने, और अपने व्यवहार को नियंत्रित करने में कठिनाई होती है।
लक्षण
ADHD के लक्षण तीन प्रमुख श्रेणियों में आते हैं:
1. ध्यान की कमी (Inattention):
पढ़ाई या काम में ध्यान नहीं लग पाना
बार-बार चीज़ें भूल जाना या खो देना
निर्देशों का ठीक से पालन नहीं कर पाना
काम अधूरा छोड़ देना
2. अति सक्रियता (Hyperactivity):
बार-बार इधर-उधर घूमना
सीट पर टिक कर न बैठ पाना
ज़रूरत से ज़्यादा बोलना
3. आवेगशीलता (Impulsivity):
बिना सोचे निर्णय लेना
बातचीत के बीच में टोक देना
अपनी बारी का इंतज़ार न कर पाना
कारण
जेनेटिक फैक्टर (वंशानुगत कारण)
ब्रेन स्ट्रक्चर और फंक्शन में अंतर
प्रसव के दौरान या पहले समस्याएं
पर्यावरणीय कारण, जैसे – धूम्रपान, शराब सेवन या जहरीले पदार्थों के संपर्क में आना
उपचार
व्यवहारिक चिकित्सा (Behavioral Therapy)
बच्चों और माता-पिता दोनों को सिखाया जाता है कि वे कैसे व्यवहार को पहचानें और बेहतर प्रतिक्रिया दें।दवाइयाँ (Medications)
कुछ स्टिमुलेंट और नॉन-स्टिमुलेंट दवाइयाँ ध्यान केंद्रित करने और अति सक्रियता को कम करने में सहायक होती हैं।शैक्षिक सहायता और ट्रेनिंग
स्कूल में विशेष व्यवस्था, समय प्रबंधन की ट्रेनिंग और कोचिंग मददगार होती है।
ध्यान देने योग्य बातें
ADHD आलस्य या अनुशासनहीनता नहीं है — यह एक वैध मानसिक स्थिति है।
सही समय पर निदान और इलाज से बच्चा या व्यक्ति पूरी तरह से सामान्य जीवन जी सकता है।
माता-पिता, शिक्षक और दोस्तों का सहयोग बहुत जरूरी होता है।
ऑपोजिशनल डिफायंट डिसऑर्डर (ODD) क्या है?
ODD यानी ऑपोजिशनल डिफायंट डिसऑर्डर एक व्यवहार संबंधी विकार है जिसमें बच्चा या किशोर बार-बार गुस्सैल, जिद्दी और अधिकारों या नियमों के खिलाफ व्यवहार करता है। यह व्यवहार सामान्य बचपने की जिद से काफी अधिक गंभीर और लगातार होता है।
लक्षण
बार-बार गुस्सा आना और चिड़चिड़ापन दिखाना
बड़ों से बहस करना या बात नहीं मानना
जानबूझकर दूसरों को परेशान करना
अपनी गलतियों का दोष दूसरों पर डालना
नियमों और निर्देशों की अवहेलना करना
आसानी से चिढ़ जाना या दूसरों से नाराज़ रहना
बदला लेने की भावना रखना
ये लक्षण अगर 6 महीने से अधिक समय तक लगातार दिखें और घर, स्कूल या सामाजिक जीवन को प्रभावित करें, तो यह ODD हो सकता है।
कारण
परिवारिक कारण: अत्यधिक सख्ती, उपेक्षा या अनुशासन की असंगति
जैविक कारण: ब्रेन के कुछ हिस्सों में असंतुलन
मनोवैज्ञानिक कारण: आत्म-सम्मान की कमी या असुरक्षा
पर्यावरणीय कारण: घर में तनाव, हिंसा या माता-पिता में झगड़े
उपचार
पेरेंट ट्रेनिंग (Parent Management Training)
माता-पिता को सिखाया जाता है कि वे बच्चे के व्यवहार को कैसे संभालें, सीमाएं तय करें और सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करें।कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT)
बच्चे को सिखाया जाता है कि वह अपने गुस्से, सोच और प्रतिक्रिया को कैसे समझे और नियंत्रित करे।परिवार परामर्श (Family Therapy)
पूरे परिवार की सहभागिता से संबंधों को बेहतर बनाने पर काम किया जाता है।स्कूल सहयोग
शिक्षकों और स्कूल स्टाफ को भी विशेष रणनीति अपनाने की सलाह दी जाती है।
ध्यान देने योग्य बातें
यह “सिर्फ बिगड़ैलपन” नहीं है — यह एक मानसिक स्थिति है।
समय पर सहायता और सकारात्मक माहौल से बच्चा धीरे-धीरे सुधार कर सकता है।
आलोचना से नहीं, सहयोग और समझ से सुधार मुमकिन है।
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) क्या है?
ऑटिज़्म एक न्यूरो-डेवलपमेंटल (मस्तिष्क के विकास से जुड़ा) विकार है, जो आमतौर पर बचपन में दिखाई देता है और जीवन भर रह सकता है। इसमें व्यक्ति को सामाजिक बातचीत, संप्रेषण (communication), और व्यवहार के क्षेत्रों में कठिनाई होती है। यह एक “स्पेक्ट्रम” है, यानी इसके लक्षण और प्रभाव अलग-अलग व्यक्तियों में अलग स्तर पर हो सकते हैं।
लक्षण
1. सामाजिक कठिनाइयाँ:
आंखों में आंखें डालकर बात न करना
दूसरों के साथ खेलना या जुड़ाव महसूस न करना
चेहरे के भाव या इशारों को समझने में कठिनाई
नाम लेने पर प्रतिक्रिया न देना
2. संप्रेषण (Communication) से जुड़ी समस्याएं:
बोलने में देरी या बोलना शुरू ही न करना
बातचीत में दोतरफ़ा सहभागिता की कमी
शब्दों को बार-बार दोहराना (Echolalia)
भाषा का असामान्य इस्तेमाल
3. दोहराव वाले व्यवहार (Repetitive Behaviors):
एक ही काम या हरकत को बार-बार करना
दिनचर्या में ज़रा-सी भी बदलाव से परेशान होना
घूमना, हाथ फड़फड़ाना या वस्तुओं को घुमाते रहना
कुछ चीज़ों में अत्यधिक रुचि (जैसे पंखा, पहिए आदि)
कारण
जेनेटिक (वंशानुगत) कारण
ब्रेन डेवलपमेंट में अंतर
गर्भावस्था या जन्म के समय जटिलताएं
कुछ पर्यावरणीय कारण (हालाँकि सटीक कारण अभी पूरी तरह से ज्ञात नहीं है)
❌ यह एक मिथक है कि वैक्सीन से ऑटिज़्म होता है — इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
उपचार
ऑटिज़्म का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन सही समय पर दिए गए सहयोग और चिकित्सा से जीवन की गुणवत्ता बेहतर की जा सकती है:
स्पीच थेरेपी – बोलने और समझने में मदद करती है
ऑक्यूपेशनल थेरेपी – दैनिक कार्यों में आत्मनिर्भर बनाती है
एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस (ABA Therapy) – सकारात्मक व्यवहार सिखाने में सहायक
स्पेशल एजुकेशन – बच्चे की ज़रूरत के अनुसार विशेष शिक्षण प्रणाली
पेरेंट्स की ट्रेनिंग – माता-पिता को बच्चों से बेहतर तरीके से जुड़ने और समझने में मदद
ध्यान देने योग्य बातें
ऑटिज़्म एक “बीमारी” नहीं है, बल्कि एक अलग neurological विकास का तरीका है।
जल्दी पहचान और हस्तक्षेप से बच्चे का संपूर्ण विकास बेहतर हो सकता है।
हर ऑटिस्टिक व्यक्ति अलग होता है — उनकी क्षमताएं, रुचियां और ज़रूरतें अलग होती हैं।
उन्हें स्वीकार करें, समझें और समर्थन दें।
पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (Personality Disorder) क्या है?
पर्सनैलिटी डिसऑर्डर एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें व्यक्ति का सोचने, महसूस करने, और दूसरों से संबंध बनाने का तरीका लंबे समय तक असामान्य होता है। इसका असर व्यक्ति के व्यक्तिगत, सामाजिक और पेशेवर जीवन पर पड़ता है। यह व्यवहार बचपन या किशोरावस्था में शुरू हो सकता है और वयस्कता में स्पष्ट रूप से दिखता है।
लक्षण
पर्सनैलिटी डिसऑर्डर कई प्रकार के होते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल हैं:
सोचने और व्यवहार करने का कठोर और लचीलेपन से रहित तरीका
दूसरों के प्रति असंवेदनशीलता या शंका
बार-बार रिश्तों में समस्या होना
भावनाओं को संभालने में कठिनाई
ज़िम्मेदारियों को निभाने में परेशानी
आत्मसम्मान या आत्म-छवि में अस्थिरता
प्रमुख प्रकार
पर्सनैलिटी डिसऑर्डर को तीन समूहों (Clusters) में बांटा गया है:
क्लस्टर A – विचित्र या अजीब व्यवहार वाले प्रकार
Paranoid Personality Disorder – दूसरों पर अत्यधिक शक
Schizoid Personality Disorder – सामाजिक दूरी, भावनात्मक ठंडापन
Schizotypal Personality Disorder – अजीब सोच, भ्रम जैसे विश्वास
क्लस्टर B – ड्रामेटिक और भावनात्मक व्यवहार वाले प्रकार
Antisocial Personality Disorder – नियमों की अवहेलना, झूठ, अपराध
Borderline Personality Disorder – अस्थिर मूड, आत्म-आलोचना, आत्महत्या की प्रवृत्ति
Histrionic Personality Disorder – ध्यान की चाह, भावनात्मक नाटकीयता
Narcissistic Personality Disorder – खुद को श्रेष्ठ समझना, दूसरों के प्रति सहानुभूति की कमी
क्लस्टर C – चिंतित और डर-आधारित व्यवहार वाले प्रकार
Avoidant Personality Disorder – अस्वीकृति के डर से सामाजिक दूरी
Dependent Personality Disorder – दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता
Obsessive-Compulsive Personality Disorder (OCPD) – पूर्णता की अत्यधिक चाह, कठोरता
कारण
जेनेटिक कारक (वंशानुगत प्रवृत्ति)
बचपन में शारीरिक या मानसिक शोषण
परिवार में अस्थिर माहौल या उपेक्षा
मस्तिष्क के रसायनों में असंतुलन
कम आत्म-सम्मान और असुरक्षा की भावना
उपचार
साइकोथेरेपी (Talk Therapy)
– CBT (Cognitive Behavioral Therapy) और DBT (Dialectical Behavior Therapy) उपयोगी होती हैं।
– इसमें व्यक्ति अपने व्यवहार, भावनाओं और संबंधों को समझता और सुधारता है।दवाइयाँ
– अवसाद, चिंता या आवेग को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर दवाइयाँ लिख सकते हैं।समूह चिकित्सा (Group Therapy)
– दूसरों के अनुभव जानकर और साझा करके व्यक्ति सीख सकता है।पारिवारिक परामर्श (Family Counseling)
– परिवार को समझाने और समर्थन देने में मदद मिलती है।
ध्यान देने योग्य बातें
पर्सनैलिटी डिसऑर्डर कोई “चरित्र की कमी” नहीं है — यह मानसिक स्वास्थ्य की एक जटिल स्थिति है।
उपचार से व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
धैर्य, सहानुभूति और निरंतर समर्थन से सुधार संभव है।
स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) क्या है?
स्किज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें व्यक्ति वास्तविकता और कल्पना के बीच फर्क करना बंद कर देता है। इसमें सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने का तरीका असामान्य हो जाता है। यह रोग लंबे समय तक चल सकता है और व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है।
लक्षण
1. सकारात्मक लक्षण (Positive Symptoms)
(वो लक्षण जो सामान्य व्यवहार में “जुड़” जाते हैं)
भ्रम (Delusions): झूठे विश्वास, जैसे — “कोई मुझे नुकसान पहुंचाना चाहता है”
मतिभ्रम (Hallucinations): असली न होते हुए भी आवाज़ें सुनाई देना या चीज़ें देखना
अराजक सोच (Disorganized Thinking): बातों का तारतम्य न होना, बेतुके जवाब देना
अजीब व्यवहार: अचानक हँसना, डर जाना या बिना कारण इधर-उधर घूमना
2. नकारात्मक लक्षण (Negative Symptoms)
(वो लक्षण जो व्यक्ति की सामान्य क्षमता को “कम” कर देते हैं)
भावनाओं की कमी, चेहरे पर अभिव्यक्ति का अभाव
सामाजिक दूरी बनाना
बोलचाल में कमी
कामों में रुचि न होना या ऊर्जा की कमी
कारण
जेनेटिक कारण (वंशानुगत): यदि परिवार में किसी को स्किज़ोफ्रेनिया है, तो जोखिम बढ़ जाता है
ब्रेन केमिकल असंतुलन: डोपामिन और अन्य न्यूरोट्रांसमीटर का असंतुलन
मस्तिष्क की संरचना में बदलाव
जन्म के समय की जटिलताएं या प्रीमैच्योर बर्थ
अत्यधिक तनाव या मादक पदार्थों का सेवन (जैसे गांजा, LSD)
उपचार
दवाइयाँ (Antipsychotics)
– यह मतिभ्रम और भ्रम को कम करने में मदद करती हैं
– नियमित रूप से और डॉक्टर की सलाह अनुसार ही लेंमनोचिकित्सा (Psychotherapy)
– CBT से व्यक्ति अपने सोच और व्यवहार को समझने में सक्षम होता है
– परिवारिक परामर्श से संबंध मजबूत किए जा सकते हैंपुनर्वास सेवाएं (Rehabilitation Services)
– व्यक्ति को फिर से समाज में सामंजस्य बैठाने में मदद करती हैंसमर्थन समूह और देखभाल
– व्यक्ति को अकेलापन महसूस नहीं होता और उन्हें समझने वाला समूह मिलता है
ध्यान देने योग्य बातें
स्किज़ोफ्रेनिया कोई “दोहरा व्यक्तित्व” नहीं है — यह एक आम मिथक है
सही और समय पर इलाज से व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है
मरीज को ताना देने के बजाय सहारा देना ज़रूरी है
परिवार का सहयोग, समझ और धैर्य इलाज का एक बड़ा हिस्सा है
कंडक्ट डिसऑर्डर (Conduct Disorder) क्या है?
कंडक्ट डिसऑर्डर एक गंभीर व्यवहार विकार है जो आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था में शुरू होता है। इसमें बच्चा या किशोर बार-बार ऐसे काम करता है जो सामाजिक नियमों, कानूनों या दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। यह सामान्य शरारत या जिद से कहीं अधिक गंभीर होता है।
लक्षण
कंडक्ट डिसऑर्डर के लक्षण चार मुख्य श्रेणियों में बाँटे जाते हैं:
1. आक्रामक व्यवहार
लोगों या जानवरों को शारीरिक नुकसान पहुंचाना
लड़ाई-झगड़े करना
धमकाना या डराना
हथियारों का प्रयोग करना
2. संपत्ति को नुकसान पहुँचाना
जानबूझकर आग लगाना
दूसरों की चीज़ें तोड़ना या नुकसान पहुँचाना
3. धोखेबाज़ी या चोरी
झूठ बोलना, धोखा देना
बिना अनुमति के चीज़ें चुराना
चोरी-छुपे घरों या दुकानों में घुसना
4. नियमों की बार-बार अवहेलना
घर से भाग जाना
स्कूल से बार-बार अनुपस्थित रहना
बड़ों के निर्देशों की लगातार अनदेखी करना
कारण
वंशानुगत प्रवृत्ति (Genetics)
मस्तिष्क के कुछ हिस्सों की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी
बचपन में भावनात्मक या शारीरिक शोषण
परिवार में अस्थिरता, घरेलू हिंसा, माता-पिता की उपेक्षा
सामाजिक वातावरण जैसे नकारात्मक साथियों का प्रभाव
उपचार
व्यवहार चिकित्सा (Behavioral Therapy)
– बच्चे को सही और गलत का अंतर समझाने, गुस्से को नियंत्रित करने और सामाजिक कौशल सिखाने पर ज़ोरपेरेंट मैनेजमेंट ट्रेनिंग (PMT)
– माता-पिता को सिखाया जाता है कि वे बच्चे के व्यवहार से कैसे निपटेंपारिवारिक परामर्श (Family Therapy)
– पूरे परिवार को शामिल करके आपसी संवाद और सहयोग को बेहतर बनाया जाता हैस्कूल सहयोग और शैक्षिक सहायता
– विशेष शिक्षकों और काउंसलरों की मदद से स्कूल में व्यवहार सुधारआवश्यक होने पर दवाइयाँ
– जब बहुत ज़्यादा आक्रामकता या अन्य मानसिक समस्याएं हों तो डॉक्टर दवाइयाँ दे सकते हैं
ध्यान देने योग्य बातें
कंडक्ट डिसऑर्डर को नज़रअंदाज़ करना खतरनाक हो सकता है — यह भविष्य में और गंभीर मानसिक समस्याओं में बदल सकता है
सज़ा या डांट से नहीं, समझदारी और पेशेवर मदद से सुधार संभव है
माता-पिता, शिक्षक और समाज को मिलकर सहयोग करना चाहिए
जल्दी पहचान और हस्तक्षेप से बच्चा सामान्य जीवन की ओर लौट सकता है
स्कूल फोबिया (School Phobia) क्या है?
स्कूल फोबिया या स्कूल से डर एक ऐसी स्थिति है जिसमें बच्चा स्कूल जाने से अत्यधिक डरता है, चिंतित रहता है या जाने से इनकार करता है। यह सिर्फ स्कूल न जाने की जिद नहीं होती, बल्कि इसके पीछे गहरी भावनात्मक परेशानी छिपी होती है। यह डर पढ़ाई से नहीं, बल्कि स्कूल के माहौल, लोगों, या अलग होने की चिंता (separation anxiety) से जुड़ा होता है।
लक्षण
स्कूल जाने की बात पर घबराहट या बेचैनी
पेट दर्द, सिर दर्द या उल्टी जैसी शारीरिक शिकायतें (लेकिन मेडिकल कारण नहीं होता)
सुबह स्कूल जाने से पहले रोना, चिल्लाना या चिपक जाना
स्कूल पहुँचते ही रोने या भागने की कोशिश करना
शिक्षक या माता-पिता से बार-बार मदद की मांग करना
वीकेंड या छुट्टियों में बच्चे का सामान्य व्यवहार हो जाना
कारण
सेपरेशन एंग्जायटी (Separation Anxiety): माँ-पिता से अलग होने का डर
बुलीइंग या स्कूल में कोई नकारात्मक अनुभव
अकादमिक दबाव या असफलता का डर
नए स्कूल या क्लास में बदलाव
घर में कोई तनावपूर्ण घटना (जैसे तलाक, बीमारी, मृत्यु)
माता-पिता की अधिक चिंता या सुरक्षा भावना
उपचार
साइकोथेरेपी (Play Therapy / CBT)
– बच्चे की भावनाओं को समझने और डर पर काबू पाने में मदद करती है
– सोच और व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायकपेरेंटल काउंसलिंग
– माता-पिता को सिखाया जाता है कि कैसे बच्चे का डर बढ़ाए बिना समर्थन करेंस्कूल के साथ समन्वय
– शिक्षक और काउंसलर मिलकर बच्चे के लिए सहयोगी वातावरण बनाते हैंधीरे-धीरे एक्सपोजर (Graded Exposure)
– पहले थोड़ी देर के लिए स्कूल भेजना, फिर समय बढ़ानारूटीन बनाना
– हर सुबह का एक स्पष्ट और सकारात्मक रूटीन बनाना
ध्यान देने योग्य बातें
स्कूल फोबिया को नज़रअंदाज़ या डांट-डपट से नहीं, समझ और सहयोग से हल करें
यह “नखरे” नहीं, बल्कि एक वास्तविक मानसिक स्थिति है
समय रहते सहायता लेने से बच्चा स्कूल से दोबारा जुड़ सकता है
माता-पिता, शिक्षक और मनोवैज्ञानिक मिलकर बच्चे के लिए सुरक्षित वातावरण बना सकते हैं
लर्निंग डिसेबिलिटी (Learning Disability) क्या है?
लर्निंग डिसेबिलिटी एक न्यूरोलॉजिकल (मस्तिष्क से जुड़ी) स्थिति है, जिसमें बच्चे को पढ़ने, लिखने, गणना करने, बोलने या समझने में सामान्य से अधिक कठिनाई होती है, जबकि उसकी सामान्य बुद्धि (IQ) ठीक होती है। यह कोई आलस, बुद्धिहीनता या लापरवाही नहीं है, बल्कि दिमाग की जानकारी प्रोसेस करने की विशेष शैली होती है।
लक्षण
लक्षण बच्चे के उम्र और कठिनाई के प्रकार के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं:
1. पढ़ने में कठिनाई (Dyslexia)
अक्षरों को पहचानने या समझने में दिक्कत
शब्दों को उल्टा पढ़ना या छोड़ देना
पढ़ते समय बार-बार अटकना
पढ़ा हुआ याद न रहना
2. लिखने में कठिनाई (Dysgraphia)
अक्षर टेढ़े-मेढ़े या अस्पष्ट लिखना
वर्तनी की बार-बार गलती
लिखते समय हाथ में दर्द या थकान
विचारों को लिखित रूप में व्यक्त करने में कठिनाई
3. गणित में कठिनाई (Dyscalculia)
जोड़-घटाव या समय का हिसाब न समझ पाना
संख्याओं की अवधारणा में भ्रम
टाइम टेबल, सिक्के या घड़ी पढ़ने में दिक्कत
4. ध्यान और स्मृति की समस्या
निर्देशों को समझने या याद रखने में कठिनाई
काम को पूरा करने में समय लगना
ध्यान जल्दी भटक जाना
कारण
मस्तिष्क की संरचना या कार्यप्रणाली में अंतर
जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी या प्रीमैच्योर बर्थ
वंशानुगत कारण (Genetics)
माँ के गर्भावस्था के दौरान किसी संक्रमण या पोषण की कमी
मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर के असंतुलन
उपचार
लर्निंग डिसेबिलिटी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन सही सहयोग और विशेष शिक्षा से बच्चा अपनी क्षमताओं का बेहतर उपयोग कर सकता है:
स्पेशल एजुकेशन (विशेष शिक्षण विधियाँ)
– बच्चे की विशेष आवश्यकता अनुसार सिखाने की तकनीकेंस्पीच और ऑक्यूपेशनल थेरेपी
– पढ़ने, लिखने और मोटर स्किल्स सुधारने में मददरिमेडियल टीचिंग
– कमजोर क्षेत्रों में अलग से अभ्यास व सपोर्टशैक्षणिक परामर्श और मोटिवेशनल सेशन
– आत्मविश्वास बढ़ाना और डर को कम करनापेरेंट काउंसलिंग और सहयोग
– माता-पिता को सिखाना कि बच्चे को कैसे सहयोग करें
ध्यान देने योग्य बातें
ये बच्चे “धीमे” नहीं होते, बस उनका सीखने का तरीका अलग होता है
उन्हें बार-बार टोकने, डांटने या तुलना करने से बचें
धैर्य, प्रोत्साहन और सही मार्गदर्शन से वे भी असाधारण कर सकते हैं
कई महान वैज्ञानिक, कलाकार और उद्यमी भी कभी लर्निंग डिसेबिलिटी से जूझे थे!